Saturday 13 September 2014

अंतरजाल : इक सुप्त ज्वालामुखी

अंतरजाल के इस जमाने में दुनिया कितनी छोटी - सी हो गई है. सात समुन्दर पार वाली बात मानो अब अतीत के गर्त में चली गई हो .पलक झपकते ही भावनाएं कोसो दूर से चली आती हैं या चली जाती हैं. भूमंडलीयकरण के इस दौर में अंतरजाल के माध्यम से ढेरों भावनाएं हर वक़्त जुडी रहती हैं.

भारत और पाकिस्तान के मध्य शीतयुद्ध का दौर कभी - कभी गंभीर हादसों में तब्दील होता है तो अंतरजाल में वैचारिक युद्ध की अंतहीन शुरुआत हो जाती है.इस वैचारिक युद्ध में अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी जाती हैं,नैतिकता को दफ़न कर दिया  जाता है. मैंने Social Sites के कई पोस्टों पर इस तरह की वैचारिक युद्ध को होते हुए देखा है. मुझे तो कई बार ऐसा लगने लगता है कि यह सुप्त ज्वालामुखी कभी फट न जाये वास्तविक रूप में.नफरत की यह आग नि:शब्द रूप से दावानल की तरह फैलती ही जाती है.  

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