Saturday 12 April 2014

बारूद की ढेर से गुजरते हुए

बारूद की ढेर से गुजरते हुए

 

बीजापुर 08.04.2014
ढेर सारी आशंकाओं के बीच राजस्थान ट्रेवल्स की बस में बीजापुर से बैठते हुए मतदान दल के सभी लोग सहमे - सहमे से अपने- अपने घरों के प्रियजनों को फ़ोन पर दिलासा देने में व्यस्त थे . पूर्व की तरह चुनाव कार्य को पिकनिक मानने वाले चेहरे भी बुझे - बुझे ही लगे. काफी इंतज़ार के बाद बस ने चलना शुरू किया तो सभी ने राहत की सांस ली . आगे चलकर कलेक्ट्रेट के सामने बस ने अपनी ब्रेक से ध्यान भंग किया तो मैंने झाँक कर देखा पूरी छः बसें कतारबद्ध एक दुसरे के आगे पीछे खडी हैं . थोड़ी देर वहाँ रूककर बसों ने फिर चलना शुरू किया . मैंने अपनी आँखे मूँद ली और कल्पना के घोड़े पर सवार हो गया - बेदरे ( जहाँ मेरी चुनाव ड्यूटी लगी थी ) कैसा होगा ? पहली बार वहाँ जा रहा हूँ . कैसे होंगे वहाँ के लोग . गोंडी बात करते हैं . मुझे तो गोंडी आती नहीं .कैसे संवाद होगा उनसे ? खाने की कैसी व्यवस्था होगी ? क्या - कुछ मिलता होगा ? पीने का शुद्ध पानी मिलेगा या अशुद्ध पानी मुझे बीमार कर देगा . नेटवर्क सिग्नल है भी कि नहीं ? जंगल में जाकर कितने दिन अपने घर वालों से संवाद नहीं कर पाउँगा ? पत्नी का मुरझाया चेहरा, बच्चों के कांतिहीन चेहरे मुझे डराने लगे. अन्दर के डर को छुपाने के लिए मैंने अन्य साथियों के साथ कुछ चुहल करने की भरसक कोशिस की पर पाया की उनकी स्थिति भी कमोबेश मेरे जैसे ही थी. दोपहर 2 बजे गुदमा गाँव में बसों के पहिये थमे. बस से ही नज़र दौड़ी तो देखा बड़े भाई धीमे क़दमों से CRPF कैंप में प्रवेश कर रहे हैं .वही उनकी ड्यूटी लगी थी. बसों ने फिर चलना शुरू किया और मैं भैया की उदास चेहरे को नजरों से ओझल होते तक देखता रहा. गुदमा के बाद कुटरू में कुटरू, फरसेगढ़ और CAF ( सुरक्षाबल ) की बसें रुक गई. साथियों से दुआ सलाम के बाद बेदरे और करकेली की पार्टियां आगे बढ़ गई. करकेली के मतदान दल को करकेली में छोड़कर हमारी एकलौती बस बेदरे के लिए ढेर सारी आशंकाओं को समेटती कच्चे रोड में हिचकोले खाते आगे बढ़ गई. जैसे-तैसे हम सभी 3.30 बजे बेदरे पहुंचे और पुलिस थाने के कैम्पस में बने एक धूलधूसरित रूम में शरणार्थी की तरह अपने सामान के साथ लाद दिए गए. बेदरे आश्रम की ओर से शाम का भोजन करने के बाद थके हारे से सभी लोग गप्पे मारते हुए सो गए .
बेदरे 09.04.2014
सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर सभी सात दलों के मतदान कर्मियों ने अपने - अपने चुनावी  थैलों को फैलाना चालू कर दिया जिसमे उनके मतदान से सम्बंधित कागजात थे. एक - दूसरे से पूछते- पाछते कागजातों की पूर्तियां कर ली गई. कल चुनाव है आज शाम को बूथ की तैयारी करनी होगी. टेबल- कुर्सियों को बूथ में ज़माना होगा. बूथ स्थल पहुंचे तो पता चला नया पंचायत भवन की चाबी सरपंच के पास है और सरपंच लापता. क्या करें यही सोच रहे थे कि जोनल ने कहा ताला तोड़ दो. आनन् - फानन में ताला तोडा गया और टेबल- कुर्सियों को व्यवस्थित किया गया. शाम को सभी लोग अपने - अपने बूथों को व्यवस्थित करके कैम्पस में लौट गये.मै जब कमरे में लौटा तो देखा कि रामचंद्रम नेता टाइप सभी को संबोधित करते हुए मेरी ही तारीफ़ की पुलें बांध रहा है - '' मेरे बड़े भैया संदीप राज बहुत ही मजाकिया, दरियादिल और अनुशासित हैं . मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूँ . मैं उनके आदेश को भगवान का आदेश मानता हूँ .'' मुझे लगा रामचन्द्रम ने चढ़ा ली है. मैंने उसे डाँटते हुए कहा- '' चन्द्रम चुपचाप खाना खा लो और सो जाओ कल चुनाव करवाना है इसलिए जल्दी उठना है.'' रामचंद्रम ने मेरी बात को स्वीकारते हुए कहा- '' दादा मैं आपकी बात को मानते हुए अभी अपना बिस्तर लगा रहा हूँ ''. अपना बिस्तर झाड़ते हुए बगल में लेटे येमैया झाड़ी को देखा तो वह मतदान पुस्तिका पढ़ने में व्यस्त था. मैंने कहा ज्यादा मत पढ़ो अब तो प्रैक्टिकल का समय नजदीक आ गया है. जो कुछ करना है बूथ में ही करना है. झाड़ी ने जवाब दिया-'' एक चीज स्पष्ट नहीं हो रही थी तो किताब में समाधान खोज रहा हूँ सर ''. '' किताब दिमाग ख़राब करती है सर'' बगल में लेटे कुरसम शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा. आपस में चर्चा करते हुए हम सभी देर रात ग्यारह बजे के आसपास सो गए. 10.04.2014 सुबह नींद खुली और मोबाइल की घड़ी पर नज़र पड़ी तो समय 3.15 हो रहा था. हड़बड़ी में बिस्तर से उठा तो झाड़ी, मल्लाराम सर को स्नान कर लौटते देख लगा. अनुशासन भी क्या चीज है. मेरे बगल में लेटे देवी सिंह को उठाते हुए मैंने शंकर को भी आवाज़ लगाईं. शौचालय में लाइन लगाकर निवृत होते-होते 5 बज गए. 5.30 बजे सातों मतदान दल के 28 सदस्य सुरक्षाकर्मियों के साए में अपने- अपने बूथों की ओर रवाना हो गए. वक़्त काटना मुश्किल हो रहा था.मतदान की दुकान खोले कई घंटे बीत जाने के बाद भी किसी ने दस्तक नहीं दी.निगाहें सामने वाली रोड पर बार - बार चली जाती पर कोई  दिखता नहीं. कर्फ्यू सा लग गया हो.उमस भरी दुपहरिया. बोतल के बोतल पानी ख़त्म हो जाते, भरे जाते.एक दूसरे को पिछले चुनाओं के किस्से सुनते - सुनाते समय कटने लगा.

जैसे ही घड़ी ने दोपहर के 3 बजाये हम लोगो ने अपना EVM और अन्य चुनाव सामग्रियों को समेटा और वापस कैम्पस की ओर चल पड़े. कैम्पस में घुसते ही थाना इंचार्ज का इशारा हुआ की जल्दी तैयार हो जाओ अभी रवानगी होनी है. वापसी की बात सुनते ही सभी दौड़ - दौड़कर कमरे की ओर भागे और अपना- अपना सामान समेटने लगे. कुछ ही पलों में सभी बस पर अपना- अपना सीट तय कर चुके थे. अब एक - एक पल काटना मुश्किल हो रहा था. मुझे फिर अपना परिवार और दोस्त याद आने लगे. शाम तक बीजापुर पहुँच जायेंगे और 1- 2 घंटों की जद्दोजहद के बाद EVM और अन्य कागजात जमा फिर .......................
'' सभी लोग बस से उतर जाएँ पार्टी पैदल मार्च करेगी. रास्ता संवेदनशील है इस वक़्त बस से यात्रा करना सुरक्षित नहीं है'' थाने के एस. आई . जिन्हें थाने के लोग परमोशन साहेब भी कहते थे की आवाज़ ने सभी के चेहरों की हवा उड़ा दी. सब एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. शंकर तो आवेश में आ गया और परमोशन साहब से ही उलझ गया- '' सुबह से खाने का ठिकाना नहीं और पैदल चलने की बात कर रहे हो हम लोग आदमी हैं कि जानवर हैं ? मैं नहीं जाऊंगा पैदल. मुझे वहां बीच - बचाव के लिए बस से उतरना पड़ा. '' तुम बात की गंभीरता को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो शंकर, मामला गंभीर है हम सब को पैदल ही करकेली तक 7 किलोमीटर की दूरी तय करना है. '' आप चल लोगे सर, हमारे जैसे कमजोर लोग इतनी दूर पैदल शायद ही चल पाएंगे वैसे भी फ़ोर्स सीधे थोड़े न ले जाएगी वो तो घुमाते - फिराते 7 किलोमीटर को 10-15 किलोमीटर बना देगी '' ये सोनला विजय की आवाज़ थी. '' नहीं विजय सर ऐसा कुछ नहीं होने वाला है हम लोग केवल और केवल 7 किलोमीटर ही चलेंगे '' मैंने सफाई दी. और ले - देकर पैदल जाने के लिए मैंने सभी को मना लिया .
3.40 बजे मय सुरक्षाकर्मियों के इर्द - गिर्द हमारा काफिला बेदरे से करकेली के लिए रवाना हुआ. हुआ वही जिसकी आशंका विजय सर ने जाहिर की थी मुख्य सड़क से हटकर हमें जंगल के रस्ते झाड़ियों, गड्डों से होकर ले जाया गया. घने जंगलों के बीच से गुजरते हुए कभी - कभी लगता किसी झुरमुट से सनसनाती गोलियों की बौछार होगी और हम सभी मारे जायेंगे. मारे जाने का भय कैसा होता है इसका अहसास पहली बार हुआ.
थके - हारे शाम 6 बजे करकेली पहुंचे. करकेली CAF कैंप में रुकी हुई मतदान पार्टी में अपनों को देखकर थकान कुछ हद तक जाती रही. करकेली CAF ने हमारी खस्ता हालत को देखते हुए हमारे भोजन की व्यवस्था करनी शुरू कर दी.
भोजन तैयार होने के इंतज़ार में हम लोग रात लगभग 8 बजे कैंप के बीच खुले मैदान में चर्चा में मशगूल थे ही कि अचानक लाइट गुल हो गई और फायरिंग की आवाज़ से इलाका गूंज उठा. चारों तरफ अफरा - तफरी मच गई जिसे जहां जगह मिला दुबक लिया.सुरक्षा बालों ने कैंप के अन्दर चारों ओर मोर्चाबंदी कर लिया और जिस ओर से नक्सलियों ने फायरिंग किया था पैरा बम छोड़े जाने लगे. एक घंटे बाद स्थिति सामान्य हुई और सभी लोग बाहर निकल आये. भोजन के वक़्त ही सुगबुगाहट होने लगी थी कि आगे की डगर भी आसान नहीं थी. रात करवटें बदलते बीता. नींद आँखों के आसपास भी नहीं फटकी. मन में बुरे - बुरे ख्याल आते रहे .
सुबह CAF के आला अधिकारी ने स्पष्ट कर दिया कि हमें करकेली से कुटरू की 10 किलोमीटर असहनीय यात्रा पैदल ही तय करना है . सबने अपने - अपने रसद रखने शुरू कर दिए . कोई बिस्कुट रख रहा है तो कोई पानी के खाली बाटल में पानी भरने के लिए हेंडपंप की ओर दौड़ लगा रहा है . छोटे से गाँव के छोटे से दूकान में जो पहले गया,पा गया बाद वाले के हिस्से कुछ न लगा.
पुलिस की रोड ओपनिंग पार्टी के ग्रीन सिग्नल का इशारा मिलते ही सुबह के 9.30 बजे कतारबद्ध चलते हुवे हम लोगों ने करकेली को अलविदा कहा.

महज सात- आठ सौ की आबादी वाला गाँव करकेली उस वक़्त सुर्ख़ियों में रहा जब सलवा जुडूम को लोगों ने जाना. नक्सलियों ने जब यहाँ अपने पाँव पसारे तो सहज आदिम प्रवृति ने उन्हें हाथों - हाथ लिया. नक्सलियों ने उन्हें बताया तुम शोषित और अपने अधिकारों से वंचित हो, तुम्हें शासन की दमनकारी नीतियों ने गरीब और बदत्तर कर रखा है. आदिम सोच को नक्सली भगवान् से कम नहीं लगे. धीरे - धीरे उनकी सहज बुद्धि ने नक्सलियों को समझना आरम्भ कर दिया था. नक्सलियों का साथ देने का खामियाजा गाहे बगाहे पुलिस की प्रताड़ना और जेल की हवा वहां की जनता के दिनचर्या में शामिल होने लगा. नक्सलियों और पुलिस के बीच पिस रहे आदिवासी धीरे - धीरे आक्रोशित और संगठित होने लगे. छोटे - छोटे गुटों के मंथन ने विशालकाय भीड़ की शक्ल अख्तियार कर ली. फुसफुसाहट से शुरु हुए स्वर ने नारों और चीख से करकेली और आसपास के गांवों में विरोध का बिगुल फूंक दिया. नक्सली हड़बड़ा गए. उन्हें अपना अस्तित्व खतरे में नज़र आने लगा. आनन - फानन में नक्सलियों ने चुन-चुनकर विद्रोही स्वरों को कुचलना शुरु कर दिया. परम्परागत हथियारों से कितने दिन लड़ पाते. सलवा जुडूम अपने शैशव काल में ही खत्म हो गया . विद्रोही आदिवासी नेशनल हाईवे के किनारे शरणार्थी कैम्पों में सुरक्षाबलों के बीच रहने के लिए मजबूर हो गए. सदियों पुरानी अपनी माटी से उनका नाता टूट गया. बेस कैम्पों की घुटन भरी जिंदगी अब उनके लिए नारकीय भविष्य से कम नहीं था.

WBM की गिट्टी निकली रोड पर चलते हुए सोच रहा था पीछे चल रही बस में सवार हो जाऊं लेकिन मन ने दिल की बात नहीं मानी. क्या पता रास्ते में कहाँ बारूद बिछा रखी हो नक्सलियों ने. तेज़ धूप से तपते सर , लडखडाते कदम दयनीय स्थिति निर्मित कर रहे थे. कुछ बीमार मतदान कर्मी सुस्ताने के लिए किसी पेड़ की छाया में शरण लेते तो साथ चल रहे पुलिस कर्मी डांटने लगते- 'थोड़ी दूर चला नहीं जाता'. लोगों के पीने का पानी ख़त्म होने लगा. कोई गरम हो गए पानी को ही पीने के लिए मजबूर था.रास्ते में कई जगह हेंडपंप नज़र आये पर सुरक्षाकर्मियों की सख्त हिदायत थी कोई भी हेंडपंप से पानी नहीं लेगा.हेंडपंप में बम लगाया गया होगा.
भूखे,थके और बीमार हम सभी 3 बजे के आसपास कुटरू पहुंचे. मेरे शरीर का तापमान अचानक बढ़ने लगा. मुझे लू लग गई थी.डर सताने लगा, अब यहाँ से पैदल चलने की नौबत आई तो क्या करूंगा.
घर फिर याद आने लगा .........................................

बिट्टू ( सुपुत्री ) का एडमिशन जगदलपुर में करवाना है. चुनाव के चलते काफी लेट हो गया है . बाबा (सुपुत्र ) मेरे बगैर कैसा होगा ? रश्मि ( पत्नी ) आते समय उदास भाव लिए मौन खड़ी थी.शायद वो भी आशंकित थी हमारी दुरूह यात्रा को जानकर. माँ ने तो गले लगाते हिदायत दे डाली कि समय से खा लेना और अपने स्वास्थ्य का ख़याल रखना, खाने - पीने की चीज हमेशा साथ रखना. और भी जाने क्या-क्या. आसपास के लोगों ने भी ढेर सारी समझाईस से मुझे लाद दिया. मुझे लगा मैं चुनाव नहीं युद्ध के लिए कूच कर रहा हूँ.
कुटरू की शाम कुछ हद तक खुशनुमा लगी क्योंकि यहाँ परिचित चेहरे दिखने लग गए थे. मकबूल, सूर्यनारायण, मधुराव,संजय, प्रवीण, लोकेश, पाटिल, गौरीशंकर, शेखर, पुरुषोत्तम सब तो यहीं थे. मकबूल, जो कि मेरे बचपन का दोस्त है, से मैंने पूछा- यहाँ खाने की क्या व्यवस्था है ? ' सेल्फ सर्विस है भाई जहां मिले खा लो और 8 बजे से पहले थाने में अपनी हाजरी दे दो.' मैंने पूछा ' थाने के मेस में नहीं बनता है क्या खाना ? हम लोग पेमेंट कर देंगे.' मकबूल ने कहा ' यहाँ का SDOP अकडू है सीधे मुंह बात नहीं करता है.' फिर तुम कहाँ खा रहे हो- मैंने पूछा. ' एक छोटा सा होटल है 20-25 लोगों का खाना बना देता है ' मकबूल ने जवाब दिया.
मकबूल से मैंने कहा ' चल यार कुछ नास्ता करते हैं, सुबह से कुछ खाया नहीं है. ' फिर हम दोनों पास के एक होटल में पहुंचे तो पता चला की नास्ता तो कुछ है नहीं बिस्कुट भर मिल पायेगा. भूख ने दम तोड़ दिया. मैंने होटल वाले से कहा ' भैया चाय ही पिला दो.' कुछ देर इंतज़ार के बाद बेस्वाद चाय की चुस्कियों के बीच वहां मौजूद लोगों ने अपनी - अपनी आपबीती एक - दूसरे को सुनाना शुरु कर दिया. शास्त्री बता रहा था कि कैसे उसने पामेड़ रेंज से ट्रांसफर करवाने की जुगत भिड़ा ली हैं. पांडू अगन्पल्ली जो कि अति शांत स्वभाव का और शास्त्री की ही तरह फारेस्टर था, चुनाव आयोग के अड़ियल रवैये से नाराज था. उसने अपने पैरों के तरफ इशारा करते हुए बताया- ' सर, मेरे पैर में बड़ा सा घाव हो गया है मैं बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हूँ, अब यहाँ से आगे पैदल चल पाना मेरे लिए संभव नहीं है.'इतने में शास्त्री अपना आपा खो बैठा और लगभग चिल्लाते हुए बोला -'जिला निर्वाचन कार्यालय में असंवेदनशील लोग भरे पड़े हैं मेरी हार्ट की डेढ़ साल पहले सर्जरी हुई है मै चुनाव कार्य से पृथक रखने का आवेदन लेकर गया तो डांटकर भगा दिया गया.' बोलते - बोलते शास्त्री हांफ गया. ' ऐसे कई लोग हैं सर, जो वास्तव में गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं जिन्हें प्रशासन की तानाशाही के चलते चुनाव ड्यूटी करनी पड़ रही है ' हमेशा चुप रहने वाले पांडू ने कहा.
शाम का भोजन एक मित्र के यहाँ करने के बाद हम लोग वापस पुलिस थाने लौट गए. EVM यथास्थान रखा हुआ था. आज मन कुछ विचलित सा लगा. जल्दी नींद नहीं आई. सोचता रहा कल पैदल ही चलना पड़ेगा या बस की व्यवस्था की जावेगी. अगर बस नहीं तो क्या 15 किलोमीटर दूर गुदमा बेस कैंप तक चल पाउँगा ? क्या बस में यात्रा करना सुरक्षित है ? अब तक कोई घटना नहीं हुई है, सब कुछ सामान्य सा ही लग रहा है. परमोशन साहेब की बात याद आने लगी जो उन्होंने कुटरू पहुँचने के बाद कही थी - हम लोग 80 % सुरक्षित निकल आये हैं, केवल 20 % ही खतरा बरकरार है. क्या 20 % ही हमारे जीवन की अग्नि परीक्षा लेने को सुरसा की तरह मुंह फाड़े खड़ी है ? अंतहीन सोच ! अनंत प्रश्न ! न खत्म होने वाली रात ! और साए की तरह कदम दर कदम साथ चलता आशंका का भूत.
कुटरू 12.04.2014
सुबह 4 बजे नींद खुली तो देखा कि सुरक्षाबल के जवान जल्दी - जल्दी तैयार हो रहे हैं. शायद रोड ओपनिंग के लिए जा रहे हों. मैंने देवी सिंह से कहा, हम लोग भी जल्दी ही तैयार होकर कुछ खा- पी लेते हैं पता नहीं कब यहाँ से रवाना होने का फरमान जारी हो जाये.
6 बजे नहा-धोकर बाहर निकले तो विजय सर कुछ उधेड़बुन करते नज़र आये. पूछा- क्या हुआ गुरूदेव तो वे बोले कुछ नहीं बड़े सर ! पर्चियों में नम्बरिंग गड़बड़ा गई है मिलान कर रहा हूँ. मैंने कहा-' इसके लिए परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है नयी पर्चियां बना लीजिये.'
नजदीक के एक होटल में नास्ता कर ही रहे थे कि थाने से बुलावा आ गया. सभी मतदान दलों को वहाँ अतिशीघ्र उपस्थित होना है. जल्दबाजी में नास्ता करके थाने पहुंचा तो सभी दलों को लाइनअप होते देखा.' सभी दल अपने-अपने EVM और दल के सभी सदस्यों के साथ कतार में खड़े हो जाएँ ' SDOP साहब चश्में से झांकते हुए बोले. ' फिर एक सब इंस्पेक्टर ने रस्ते में आने वाली कठिनाइयों का संक्षिप्त विवरण दिया और साथ ही बताया कि रास्ता बेहद संवेदनशील है बस में सफ़र करना खतरनाक है.
कुछ देर बाद एक मुंशीनुमा आदमी कागज-पेन लेकर हाजिर हुआ और कहने लगा - जो बीमार है,नहीं चल सकते हैं वे अपना नाम मेरे पास दर्ज करवा लें उन्हें बस में भेजने की व्यवस्था की जावेगी. उस मुंशी के इर्द-गिर्द भीड़ जुटने लगी. शंकर, विजय सर ने भी अपना नाम दर्ज करवाया.
'रामचंद्रम नहीं दिख रहा है, मैंने प्रवीण से पूछा तो उसने बताया कि सुबह एक झलक दिखने के बाद वह नज़र नहीं आया है , पता नहीं कहाँ होगा ?
पानी बाटल,खाने की वस्तुएं, ग्लूकोस के पैकेट, तम्बाकू- चूना और न जाने क्या-क्या रखते नज़र आये मतदान कर्मी. मैंने भी पानी का एक बाटल और ग्लूकोस का एक पैकेट अपने बगल में खोंसा और रवानगी आदेश की प्रतीक्षा में थाने की ओर नज़रें गड़ाए हुए मकबूल से बातें करने लगा.
आखिरकार 8 बजे प्रातः हमें रवानगी का फरमान जारी कर दिया गया.कुटरू से हमें 15 किलोमीटर दूर गुदमा जाना था. घर लौटने की उमंग ने क़दमों को तेज़ कर दिया था. चलते - चलते नज़रें आगे और पीछे दूर तक अपनों को तलाशती. साथ चल रहे. मधु सर को रामचंद्रम के बारे में पुछा तो उन्होंने अनभिज्ञता से सर हिला दिया. क्या रामचंद्रम भी हमारी ही तरह पैदल चल रहा है ? या ........?? नहीं वो जरूर आगे वाले कतार में होगा. शंकर और विजय सर पीछे छूट गए, शायद बस में आने की जिद ने उन्हें वहाँ रोक दिया हो. क्या 15 किलोमीटर नहीं चल सकते ? 61 वर्षीय मल्लाराम सर भी बस में बैठे है. उम्र का हवाला देते उन्होंने जिला निर्वाचन कार्यालय को अर्जी दिया था कि मै चुनाव कार्य का सम्पादन नहीं कर पाउँगा पर उनकी एक न सुनी गई.
कुटरू से अभी 4 किलोमीटर की दूरी ही तय कर पाए थे कि घुटनों ने जवाब देना शुरु कर दिया.आर्थराइटिस फिर से उभर आया था. कदम धीमे हो गए थकान और दर्द हावी होने लगे थे. माँ की एक बात याद आने लगी- जब भी मुसीबत में हो, हिम्मत मत हारना. खत्म होती उर्जा और पैरों के बढ़ते असहनीय दर्द ने नक्सली आतंक को मानो भुला सा दिया था. जैसे - तैसे केतुलनार पहुंचे. एक हेंडपंप से पुलिस वाले को पानी पीते देख हमने भी अपने बोतल को भरने में देर नहीं लगाया.
केतुलनार से होते हुए ठीक 11 बजे हम लोग गुदमा पहुँच गए. वहां बड़े भाई सुबिराज मिले, पानी के लिए पूछा और बैठने की व्यवस्था की. मैंने भैया से पूछा - कुछ खाए कि नहीं तो वे बोले सुबह से ही तुम लोगों के आने का इंतज़ार करते कुछ नहीं खाया. फिर मैंने उन्हें अपने साथ रखे बिस्कुटों में से कुछ बिस्कुट उन्हें खाने के लिए दिया. फिर भैया मुझे उनके टेंट में ले गए और बोले कुछ देर यहाँ आराम कर ले. तपती धूप में भला टेंट क्यों न गरम होता. अन्दर भट्टी सा गर्म हो चुका टेंट मुझे कुछ ही देर में बाहर ले आया. कैसे सो रहे थे भैया इतने दिनों से इस तपते टेंट में !
11.30 बजे टेंट से बाहर एक पेड़ की छाँव में प्रवीण के साथ बैठा ही था कि CRP का एक जवान बदहवाश सा सामने बने काटेजनुमा झोपड़ी में बैठे CRP,CAF के आला अधिकारियों को कुछ बताने लगा .मुझे बस विस्फोट जैसा शब्द ही सुनाई दिया. मैंने उधर से आते एक शिक्षक से यह कहते सुना कि पीछे आने वाली किसी बस को केतुलनार के पास नक्सलियों ने विस्फोट से उड़ा दिया है. सन्न रह गया मैं. जो सुन रहा हूँ क्या वो सच है ? शायद सुनने- समझने में कोई गलतफहमी हुई हो.नहीं, नक्सली शिक्षकों को निशाना नहीं बना सकते. लोग बेचैन हो रहे थे कि वास्तव में क्या हुआ है. कुछ क्षणों के बाद लोगों से यह कहते सुना कि राजस्थान ट्रेवल्स की बस उड़ा दी गई है. फिर किसी ने बताया कि शायद साईं वाली बस विस्फोट के चपेट में आई है जिसमे बैठे 4 मतदान कर्मी मारे गए है. ओफ्फ! ये क्या हो रहा है. कोई सही बात क्यों नहीं बता रहा है , क्या है असलियत ?
आधे घंटे के अंदर स्पष्ट हो गया कि 4 नहीं बल्कि 6 लोग मारे गए हैं. लेकिन कौन हैं वो अभागे ? क्या रामचंद्रम ? क्या नंदा ? क्या विजय ? क्या शंकर ? क्या मल्लाराम सर ? क्या चिलैया ? क्या शास्त्री ? सबने अपनों की छानबीन शुरू कर दी. कौन- कौन राजस्थान बस में था? कौन साईं बस में था.? हाँ इतना तो स्पष्ट हो गया था कि राजस्थान ट्रेवल्स की बस ही बारूदी सुरंग की चपेट में आई है.
एक- दो घंटा युगों के समान लगने लगा. दो घंटे के बाद स्थिति एकदम से स्पष्ट हो गई कि उक्त घटना में रामचन्द्रम, विजय सर,कुरसम शंकर, वी. वी. शास्त्री, येमैया झाड़ी और देवांगन की मौके पर ही मौत हो गई. अंगनपल्ली पांडू ने इलाज़ के लिए बीजापुर ले जाते वक़्त रास्ते में ही दम तोड़ दिया. मल्लाराम सर और मिच्चा रमैया घायल हुए हैं .
आखिरकार लाल आतंक जीत गया !
बेबसी, लाचारी ने घुटने टेक दिए !!
अफसरशाही की जीत हुई !
इस लड़ाई में जीत कर भी मैं हार गया.